यह कविता खासकर उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है, जो नारी / महिलाओं को अपने पैर की जूती समझते हैं। यह कविता पढ़ने के बाद जिन पुरुषों को अपने पुरुषत्व पर घमंड होगा वो तो टूट ही जाएगा और बचा-खुचा जो बुखार चढ़ा है वह भी उतर जाएगा। ( कुछ अपवाद हो सकते हैं )
” नारी है शान देश की
नारी है अभिमान देश की
बस मत बराबर दान करो
नारी का सम्मान करो
मां बन धरती पर लाया जिसने
अपने दूध से सींच बढ़ाया जिसने
यह बात हमेशा ध्यान करो
नारी का सम्मान करो
ना हीं होता जन्म तुम्हारा
ना होती बिसात तेरी
घमंड न करना पुरुषत्व पर अपने
बिन नारी क्या औकात तेरी
अहं त्यागकर धीरज रखकर
नारी चेतना का उत्थान करों
नारी का सम्मान करो
जब लगे नारी है कठपुतली हाथ की
हर कदम जरूरत उसे मेरे साथ की
ये एहसास अगर तुम्हें हैं, तो जान लेते तुम काश!
क्योंकी मां ही है वो सत्य, पिता तो है विश्वास
अभिशाप नहीं वरदान है नारी
सृष्टि ही नहीं पूरी कायनात है नारी
ना उसका अपमान करो
नारी का सम्मान करो
नारी का सम्मान करो…”